ये आती हैं ,जाती हैं ,
एक तेरी याद है ,
जो सीने में अटकी हुई है ,
मुझे रह -रह कर पुकार रहा है कोई,
छिप -छिप कर निहार रहा है कोई ,
मैं अब मैं नहीं रहा शायद ,
मेरे भीतर जिन्दगी गुज़ार रहा है कोई ,
लगता है ये तेरी यादों का जंगल है ,
जहाँ मेरी रूह भटकी हुई है,
एक तेरी याद है ,
जो सीने में अटकी हुई है ,
कल की ही तो बात है ,
तेरा नाम किसी नें लिया था ,
किसी और को बुलानें के लिए ,
बस ये काफी था ,
मेरे तिनके नुमा दिल को जलने के लिए,
मैं सोचता हूँ ,
कि आँखों में अश्क भर-भर कर उड़ेलूँ
इस आग पर ,
पर क्या करूँ,
मेरी आँखों की मटकी चटकी हुई है ,
एक तेरी याद है,
जो सीने में अटकी हुई है ,
तुझे पता है !
जिन्दगी तेरे बिना ,
अंधरे में घिरता हुआ एक चराग़ बन गई है ,
जब बसाया था दिल में तो शबनम थी ,
अब तेरी तस्वीर आग बन गयी है ,
तेरी याद में कब का फ़ना हो गया हूँ मैं ,
ये जान तो बस यूँ ही लटकी हुई है ,
एक तेरी याद है ,
जो सीने अटकी हुई है ,
तुम्हारा --अनंत
3 टिप्पणियां:
bahut kub anurag kasam se bahut acha likha hai bhai
bahut khoob.gazab ka likhate ho.kalam ko rukane mat dena.
i m happy yar plz countinue your jurny
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