मैं सिगरेट नहीं था
और सिगरेट की राख भी नहीं था
मैं सिगरेट का फ़िल्टर भी नहीं था
और ना उससे उठने वाला धुवां ही था
मैं वो उंगलियां भी नहीं था
जिसमे फंसी रहती है सिगरेट
और ना वो होंठ ही
जिसमे धरी रहती है सिगरेट
मैं वो जिगर तो कतई नहीं था
जहाँ जाता है सिगरेट का धुंआ
और कुछ देर रहने के बाद
अपना एक हिस्सा छोड़ कर बाहर निकल आता है
मैं तुम्हारी वो सांस था
जो सिगरेट के धुएं को भीतर खींचती है
और कुछ देर धुएं के साथ जिगर में बैठती है
और बाहर आती है एक अजनबी चहरे के साथ
तुम वो हवा नहीं थे
जिसमे घुलता है धुंआ
तुम वो हाँथ थे
जो नाक के सामने वाइपर की तरह चलता है
पर साँसों का धुंधलका
वाइपर से कहाँ धुलता है
तुम्हारे लाख ना चाहने के बाद भी
मैं तुम्हारी साँसों में घुल जाता था
तुम्हारे जिगर के किसी कोने में बैठकर
अँधेरे की ताल पर
उजाले के गीत गाता था
और जब तुम मेरा नाम पूछते थे
मैं अपना नाम "पैसिव स्मोकिंग" बताता था
मैं एक सांस से दूसरी सांस तक जाता था
और इसी रास्ते पर चलते हुए
कविता बनाता था
तुम्हारा-अनंत
और सिगरेट की राख भी नहीं था
मैं सिगरेट का फ़िल्टर भी नहीं था
और ना उससे उठने वाला धुवां ही था
मैं वो उंगलियां भी नहीं था
जिसमे फंसी रहती है सिगरेट
और ना वो होंठ ही
जिसमे धरी रहती है सिगरेट
मैं वो जिगर तो कतई नहीं था
जहाँ जाता है सिगरेट का धुंआ
और कुछ देर रहने के बाद
अपना एक हिस्सा छोड़ कर बाहर निकल आता है
मैं तुम्हारी वो सांस था
जो सिगरेट के धुएं को भीतर खींचती है
और कुछ देर धुएं के साथ जिगर में बैठती है
और बाहर आती है एक अजनबी चहरे के साथ
तुम वो हवा नहीं थे
जिसमे घुलता है धुंआ
तुम वो हाँथ थे
जो नाक के सामने वाइपर की तरह चलता है
पर साँसों का धुंधलका
वाइपर से कहाँ धुलता है
तुम्हारे लाख ना चाहने के बाद भी
मैं तुम्हारी साँसों में घुल जाता था
तुम्हारे जिगर के किसी कोने में बैठकर
अँधेरे की ताल पर
उजाले के गीत गाता था
और जब तुम मेरा नाम पूछते थे
मैं अपना नाम "पैसिव स्मोकिंग" बताता था
मैं एक सांस से दूसरी सांस तक जाता था
और इसी रास्ते पर चलते हुए
कविता बनाता था
तुम्हारा-अनंत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें