मेरी नींद में जागता सपना
सपना नहीं है
वो मेरा "मैं" है
मैं उसी के लिए जीता हूँ
मैं उसी को लिए जीता हूँ
इसीलिए यथार्थ के आईने में भी
मैं जागते सपने सा दीखता हूँ
मैं तुम्हारी जागती आँखों से
नींद का काजल चुराता हूँ
और इसी से
मैं मेरे "मैं" की कविता बनाता हूँ
तुम्हारा-अनंत
सपना नहीं है
वो मेरा "मैं" है
मैं उसी के लिए जीता हूँ
मैं उसी को लिए जीता हूँ
इसीलिए यथार्थ के आईने में भी
मैं जागते सपने सा दीखता हूँ
मैं तुम्हारी जागती आँखों से
नींद का काजल चुराता हूँ
और इसी से
मैं मेरे "मैं" की कविता बनाता हूँ
तुम्हारा-अनंत
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