दयाशंकर जी बड़े देशभक्त किस्म के इंसान हैं। तन समर्पित, मन समर्पित, जीवन का क्षण-क्षण समर्पित टाइप देश भक्त। और जितने देशभक्त उतने सफाई प्रेमी भी। भारत माता की जय बोलते समय। सीना छपन हो जाता है। पहले छत्तीस होता था। इधर बीते कुछ सालों से छप्पन होने लगा है। कारण का पता लगाने के लिए मोहल्ले के वैज्ञानिक लोग रोज शाम को चार से छ : बजे तक शोध करते हैं। रिपोर्ट बन गयी है। जल्द ही सब्मिट करेंगे।
खैर दयाशंकर जी इलाहबाद ऑर्डिनेंस डिपोट में हैं। इसलिए दफ्तर में ज्यादा काम होता नहीं है। कुर्सी में बैठ जाते हैं और राम कथा बांचते रहते हैं। राम जी के वनवास का प्रकरण तो ऐसा सुनते हैं कि जान निकल जाए। लोग रोने लगते हैं। और बाद में दयाशंकर जी हँस-हँस के अपने इस हुनर का बखान करते हैं। कहते हैं, वक्ता ऐसा हो, जो रुला दे। हंसा तो जोकर भी देता है।
वो राम के अलावा राष्ट्र पर भी बेहद बढ़िया बोलते है। जब वो राष्ट्र के बारे में बोलते हैं। तो लोगों की नसें तन जातीं हैं। लोग दौड़ कर बलिदान हो जाना चाहते हैं। अपने नाम के आगे शहीद ऐसे देखना चाहते हैं जैसे श्री लिखा हो। दो मिनट में कश्मीर से कन्या कुमारी तक का मामला सुलझा-सुलटा देते हैं दयाशंकर जी।
तीसरा प्रेम उन्हें गाय से है। कई बार गाय के पैर छूने के चक्कर में दुलत्ती खा चुके हैं। गाय के बारे में अपार ज्ञान है। उसकी उपयोगिता पर व्याख्यान के लिए लोग इन्हें दूर दूर से बुलाते हैं। और ये पैसे ले के जाते हैं। तो कुल मिला के, बेहद चकमदार व्यक्तित्व है दयाशंकर जी का। वक्ता, विद्वान्, देशभक्त और दार्शनिक सब साथ में। कम्प्लीट पैकेज हैं दयाशंकर जी।
दराशंकर जी पांच बजे दफ्तर से घर आ जाते हैं। आधा घंटा चाय-वाय पी कर, साफ़ सफाई में लग जाते हैं। घर के चबूतरे और दुवारे झाड़ू लगाते हैं। घर के सामने की नाली खुद साफ़ करते हैं। और जो कूड़ा निकलता है उसे आँख बचा कर कभी शुक्ला जी के घर के सामने, कभी शर्मा जी के घर के सामने डाल देते हैं। मौका नहीं लगा तो तिवारी जी के प्लाट पर दो कदम बढ़ कर डाल दिया। सुबह जो उनके प्रवचन में अखंड भारत अफगानिस्तान तक हिलोरे मरता है वो पांच बजे के बाद अपने घर के दुआरे तक सीमित हो जाता है। उनके घर का दुवारा अखंड भारत होता है। और उसे स्वच्छ रखना उनका परम कर्त्तव्य। पांच से आठ बजे के बीच अगर गाय दिख जाती है तो कोहनी से उसे मारते हैं। क्योंकि इस बीच गाय के गोबर से भिन्नाए रहते हैं। उनका चबूतरा रोज गन्दा कर देती है। 'आवारा गाय" कहींकी। लोग दूध दूह लेते हैं और हगने के लिए छोड़ देते हैं दयाशंकर दुबे के दुवारे। मरेंगे हग मारोगी ससुरी" जब भिन्नाते हुए बोल के मारते हैं। गाय दुम उठा कर भागती है।
रात आठ बजे तक सुपरमैन अवतार में रहते हैं दयाशंकर जी। आठ बजे नहाते हैं। गौग्रास लेकर फिर बाहर निकलते हैं। गाय माता को ढूंढ कर खिलाते हैं। करीने से पैर छू कर आशीर्वाद लेते हैं और फिर कहीं खाना खाते हैं। साढ़े आठ से नौ-साढ़े नौ तक कन्हैया को देशप्रेम और व्यक्तित्व विकास पर प्रवचन देते हैं। कन्हैया दस साल का उनका पोता है। पिछले कुछ दिनों से वो उनके लिए परेशानी और दुःख का कारण बना हुआ है। वो टीवी पर हमें चाहिए आज़ादी वाले नारे उसे बहुत पसंद आ गए हैं। सुबह-शाम दौड़ दौड़ के वही रटता रहता है। दयाशंकर जी का दिल दरक जाता है। दिमाग दहक जाता है। पर क्या करें ? बच्चा है। पोता है।
कल वो उसे राष्ट्र, भारत माता और गाय माता के बारे में बता रहे थे कि उसने दो तीन सवाल दनादन पूछ लिया। बाबा हमारा देश आदमी है या औरत ? बाबा गुस्सा गए, क्या मतलब ? बच्चे ने पूछा, हम इसे भारत माता कहते हैं। तो ये हमारा देश नहीं, हमारी देश होना चाहिए। वो डांटते हुए बोले, क्या ? बच्चे ने कहा, हाँ। बताइये। दयाशंकर जी चुप रहे। फिर बच्चे ने पूछा, बाबा आप गाय को माता कहते हैं तो उन्हें मारते क्यों हैं ? गाली क्यों देते हैं ? ये सवाल सुन के दयाशंकर जी पूरी तरह भिन्ना गए। बच्चे ने आगे एक दो सवाल और पूछे पर उन्हें कुछ सुनाई नहीं दिया। उनके कानों में बस हमें चाहिए आज़ादी, सच बोलन की आज़ादी, पढ़न-लिखन की आजादी, आज़ादी आज़ादी.......!! नारे गूंजते रहे। उन्होंने अपने बेटे अमित को आवाज़ लगाई। अमित-अमित !! ये लौंडा बर्बाद हो रहा है। देशद्रोही हो जायेगा ये। इसका नाम तुरंत बदलो। तुम इसका नाम कन्हैया से बदल कर नरेंदर रख दो। अबतो बस यही एक चारा है !! दयाशंकर जी बोले। और आँख बंद करके गुस्सा शांत करने लगे।
तुम्हारा-अनंत
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