बोलो, मुंह तो थोड़ा खोलो
बन के काल के जैसे डोलो
हवा बानी थीं तुम तो बहुत दिन
थोड़ा सा तूफ़ान भी होलो
देखें बदलाव को, वो कैसे रोकते हैं-2
सिर के पल्लू को परचम कर लो
अपने ज़ख्मों को मरहम कर लो
खुद को उनके बरहम कर लो
कफ़स तोड़ के अब तुम दम लो
देखें जलती आग में वो क्या झोंकते हैं-2
उठ मेरी जाँ साथ है चलना
तुम सूरज सा अब न ढालना
दर्द के पर्वत को है गलना
दहलीज़ों के पार निकलना
देखें बढ़ते कारवां को कैसे रोकते हैं-2
चूड़ियां, कंगन, बिछिया, नथिया
छेनी, खुरपी, हथौड़ा, हंसिया
बोले ज़ोर लगा के हैय्या
चलना साथ में बहिनी- भइया
मिलके सारी जंज़ीरों को अब तोड़ते हैं-2
अब न आप, न बाप से डरना
न पुण्य, न पाप से डरना
न आशीष, न शाप से डरना
न शुचिता के जाप से डरना
देखें नया फ़तवा वो क्या ठोकते हैं-2
तुम्हारा-अनंत
कफ़स-पिंजरा
नोट-"आप" को समाज के प्रतीक और "बाप"को पितृसत्ता के प्रतीक के लिए लिया गया है
बन के काल के जैसे डोलो
हवा बानी थीं तुम तो बहुत दिन
थोड़ा सा तूफ़ान भी होलो
देखें बदलाव को, वो कैसे रोकते हैं-2
सिर के पल्लू को परचम कर लो
अपने ज़ख्मों को मरहम कर लो
खुद को उनके बरहम कर लो
कफ़स तोड़ के अब तुम दम लो
देखें जलती आग में वो क्या झोंकते हैं-2
उठ मेरी जाँ साथ है चलना
तुम सूरज सा अब न ढालना
दर्द के पर्वत को है गलना
दहलीज़ों के पार निकलना
देखें बढ़ते कारवां को कैसे रोकते हैं-2
चूड़ियां, कंगन, बिछिया, नथिया
छेनी, खुरपी, हथौड़ा, हंसिया
बोले ज़ोर लगा के हैय्या
चलना साथ में बहिनी- भइया
मिलके सारी जंज़ीरों को अब तोड़ते हैं-2
अब न आप, न बाप से डरना
न पुण्य, न पाप से डरना
न आशीष, न शाप से डरना
न शुचिता के जाप से डरना
देखें नया फ़तवा वो क्या ठोकते हैं-2
तुम्हारा-अनंत
कफ़स-पिंजरा
नोट-"आप" को समाज के प्रतीक और "बाप"को पितृसत्ता के प्रतीक के लिए लिया गया है
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