शुक्रवार, अप्रैल 07, 2017

कौन बेवफा था ? क्या मजबूरियां थीं ?

उसने कहा,"मैं उसे भूल जाऊं"
मैं अपना नाम भूलने लगा और अपना पता भी। उसके जाने के बाद, मैं इधर उधर पागलों की तरह भटकता और लोग कहते, "अभी तक तो सही था नजाने क्या हो गया ?" मैं उन्हें देखता, कभी तेजी से हँसता, कभी रोता, कभी मुस्कुरा देता" मैंने एक पल में ही भविष्य में झाँक कर ये सब देख लिया। और लगभग पत्थर की तरह खड़ा रहा।

वो मेरे हांथो को अपने हांथो में लिए आसमान के उस पार देख रही थी। वो आसमान के उस पार भी देख सकती थी और मेरी आँखों के उस पार भी। इसलिए मुझे उसकी आँखों से प्यार हुआ था।

मैंने कहा, क्या तुम मुझे भूल गयी हो ?
उसने कहा, हाँ।
ये कैसे हो सकता है? तुमने कहा था मैं तुम्हारी धड़कनो में धड़कता हूँ,'लगभग चीखते हुए मैंने कहा'
मुझे सब याद है, ,'लगभग रोते उसने कहा'
कुछ देर हम दोनों चुप रहे। जैसे कोई बच्चा सहम कर शांत हो जाता है।
फिर मैंने बुबुदते हुए कहा, कह दो तुम झूठ बोल रही हो।
उसने कहा, कुछ झूठ इसलिए बोले जाते हैं कि सच पता चल जाए।
मैंने कहा, सच क्या है?
उसने कहा, हम कभी एक नहीं हो सकते।
तो झूठ क्या है? मैंने कहा।
मैं तुमको भूल गयी हूँ, उसने कहा।

उसके बाद हम उठे और वहां से अपने घरों की तरफ फिर कभी न मिलने के लिए चल दिए। बाग़ के पेड़ पौधे अगर सोच सकते होंगे तो यही सोच रहें होंगे। कौन बेवफा था ? क्या मजबूरियां थीं ?

तुम्हारा-अनंत

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