मंगलवार, अक्तूबर 18, 2011

इस समुद्र के तन पर ध्यान से देखो खादी चढ़ी हैं
समुद्र के चुम्बकत्व को ख़तम करना है ,
जो खिंच कर पी जाता हैं सैकड़ों नदियाँ ,
हज़ारों लोगों को प्यासा छोड़ कर ,
तड़पते देखता है मुस्कुराते   हुए ,
देश और प्रदेश की राजधानियों में,
 सबसे शानदार इमारतों में हिलकोरा मरता हुआ ,
शोषित कंठों के रुदन पर अट्टहास करता हैं ,
यहीं  पर  बहता  है वो समुद्र ,अट्टहास करते हुए  

तुम्हारा--अनंत 

1 टिप्पणी:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

समुद्र की संसद से तुलना ..अनुपम उदाहरण है .