तनी भृकुटी पर
अनमने से मन की
बलि दे कर
फिर से लग गया था काम पर
हाड-मांस की काया है
मशीन नहीं है बाबू जी !..
ये भी नहीं कह सका
क्योंकि जवाब का जूता
खा चुका था कई बार
तुम नहीं तो कोई और सही
बहुत हैं काम करने को
कामचोर! कहीं के......
कहा जोर से
मालिक ने
सुना दुनिया ने
सुगबुगाते हुए
अपने आक्रोश और चीख को
धैर्य और विवशता की
काली पहाड़ी के पार
खूँटे से बाँध कर
बुदबुदाया मजूरा !
तुम जैसे ही हैं सभी
बहुतों के यहाँ करा है काम
दामचोर! कहीं के....
कहा अपने ही मन में
सुना मजूर ने
मजूर कामचोर है
दुनिया जानती है
मालिक दामचोर है
(क्योंकि दुनिया मन की आवाज़ नहीं सुन सकती .....)
तुम्हारा--अनंत
बलि दे कर
फिर से लग गया था काम पर
हाड-मांस की काया है
मशीन नहीं है बाबू जी !..
ये भी नहीं कह सका
क्योंकि जवाब का जूता
खा चुका था कई बार
तुम नहीं तो कोई और सही
बहुत हैं काम करने को
कामचोर! कहीं के......
कहा जोर से
मालिक ने
सुना दुनिया ने
सुगबुगाते हुए
अपने आक्रोश और चीख को
धैर्य और विवशता की
काली पहाड़ी के पार
खूँटे से बाँध कर
बुदबुदाया मजूरा !
तुम जैसे ही हैं सभी
बहुतों के यहाँ करा है काम
दामचोर! कहीं के....
कहा अपने ही मन में
सुना मजूर ने
मजूर कामचोर है
दुनिया जानती है
मालिक दामचोर है
मजूरा जानता है
(क्योंकि दुनिया मन की आवाज़ नहीं सुन सकती .....)
तुम्हारा--अनंत
7 टिप्पणियां:
Nice one
nice one
बहुत सही.
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/02/blog-post_11.html
मालिक दामचोर है,
मजूरा जानता है,
एक यथार्थ,
dardbhari magar sateek rachna! shukriya
anant tum accha likhte ho. yun hi likhte raho , gaurav asri
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