सब कहते है
मेरे पास कुछ है
जो उम्र के अठारह बसंत पार करके
खुद-ब-खुद
बड़ी ताकतवर चीज है वो
संसद चलाती है
सरकार बनाती है
बड़े-बड़े सूरमा
हाँथ जोड़ते हैं
मेरे सामने
फैलाते हैं
अपना रेशमी दामन
कि मैं अपने खुरदुरे हांथों से
दे दूं उन्हें वो चीज
जिसे मैंने पा लिया था
उम्र के अठारह बसंत पार करके,
खुद-ब-खुद,
यकीन मानों
मुझे यकीन नहीं होता
कि मेरे पास कुछ है
जिससे सरकार बनती है
संसद चलती है
सत्ता जिसके मुँह ताकती है
मेरे पास ऐसा कुछ है
किसकी कुछ कीमत है
यकीन मानो
मुझे यकीन नहीं होता
बल्कि हर बार ऐसा लगता है कि
आश्रित होने का झूठा भ्रम रचा जाता है
लोकतंत्र कि रीढ़ विहीन लाश का
बचा हुआ खून चूसने के लिए
पाली बतालते हैं रक्त पिपासु
इसका भी इल्जाम आता है मेरे ऊपर
मैंने बदल दिया शोषित मृत शरीर पर
शोषक की काया
नया शोषक नए तरीके से
नए जोश और रणनीति के साथ
चूसता है खून मेरा और मेरे लोकतंत्र का
हर बार मुझे लगा है
कि मैं नपुंसक हूँ
जो नहीं सम्भाल पाया
वो कीमती चीज
जो पा लिया था
मैंने उम्र के अठारह बसंत पार करके
खुद-ब-खुद
छीन लिया शोषक ने
और कर रहे हैं शोषण लोकतंत्र की लाश का
बदल कर चाल -चेहरा
भाषा, रंग और झंडा
खड़े हैं चारों तरफ बदले हुए
बटे हुए
बिखरे हुए
सब एक हैं
छीन लेंगे इस बार भी मुझसे
वो चीज जिसे मैंने पाया था
उम्र के अठारह बसंत पार करके
खुद-ब-खुद
तुम्हारा--अनंत
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