मै चला आया हूँ घर से ,
दो आँख रोती होगी ,
एक गंगा सी बह रही होगी,
तो एक यमुना हो रही होगी ,
मचलता होगा एक मन ,
ये पूछने के लिए,
कि आज क्या खाओगे ?
सुबह उठने के बाद ,
बढ़ते होंगे दो बेकस कदम ,
मेरे कमरे कि तरफ ,
मुझे जगाने के लिए ,
और मेरा खाली बिस्तर देख कर ,
वापस आ जाते होंगे मायूसी ओढ़कर,
पूजा करते वक़्त जुड़ते होंगे दो हाँथ ,
और एक मुंह,
एक मन के साथ मांगता होगा दुआ,
मेरे लिए ,
रात को सोते वक़्त,
एक माँ कलप कर मेरा नाम ले लेती होगी,
मै चला आया हूँ घर से ,
दो आँख रोती होंगी ,
तुम्हारा--अनंत
आप यदि घर से बहार है तो आप के घर पर भी दो आँख रोती होगी
या फिर यदि आप अपने घर से जब कभी बहार जायेंगे ,तो कोई रोये चाहे न रोये दो आँख जरूर रोयेंगी ,
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6 टिप्पणियां:
meri is kavita par tippdi jaroor kare.
bahut sundar panktiya hain anant......mere bhi dono bachche bahar hain abhi.....bilkul asa hi hota hai jiska jikr kiya hai tumne......
bahut acha mitra aap aise hi apna yogdan dete rahe
gud anant ji keep it on for us
aap jitna simple likhte hai utna hi...dil ko chhu jati hai apki soch....anand ji aap bhot achcha likhte hai..wakai..!!
yadi samay ho to kabhi mere blog par bhi padharein......tareef nahi sirf pratikriya chahoongiiii...................abhi blog lekhan me naiii hoon na.....
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