जब -जब मचलता है ,
आँखों से कुछ निकलता है ,
और चहेरा भीग जाता है ,
चिहराई हुई दीवारें ,
परत -दर -परत जब गिरती है ,
कुछ जख्म टहलते है ,
एक पीर बिखरती है ,
धुआं माथे पर हाँथ रख कर बैठ जाता है,
और चेहरा भीग जाता है ,
एक सीढ़ी नुमा ख्याल ,
उतर कर दिल में छिप कर लेट जाता है ,
धडकनें सर पर हाँथ फेरती है ,
चाँद के चेहरे पर सूरज उभरता है ,
और फिर चेहरा भीग जाता है ,
और फिर चेहरा भीग जाता है ,
कोई हवा जब ,फर्श पर पड़े जर्रे को ,
अर्श पर बिठाती है ,
उसके रुंधे हुए गले को माला पहनाती है ,
तो वो जर्रा रोते हुआ जमीन की ओर देखता है ,
और चेहरा भीग जाता है ,
जब आधी रात को ,दो पेड़ ,
अकेले घुटनों तक रजाई ओढ़ कर ,
बरसात की बात करते है ,
तब न जाने कहाँ से आ कर ,
सावन का मेघ बरस जाता है ,
सावन का मेघ बरस जाता है ,
और चेहरा भीग जाता है ,
तुम्हारा --अनंत
2 टिप्पणियां:
आपको हिंदी ब्लागर्स फोरम इंटरनेशनल HBFI में शामिल होने के लिए चुना गया है । कृप्या अपनी ईमेल ID भेज दीजिए - eshvani@gmail.com
पर ।
वो अपने हैं लेकिन दग़ा दे रहे हैं
मेरे जलते घर को हवा दे रहे हैं
क़सम ले के पहले मुझसे न मिलने की
मुझे अपने घर का पता दे रहे हैं
ऐसे भी लोग होते हैं ।
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