मर्द बड़ा है, छोटी औरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
चुप्पी से प्यार, बोल से नफरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
एक मुट्ठी है, गहरी भारी, जिसमे कैद आज़ादी है
एक ज़ंज़ीर है, जिसमे जकड़ी भारत की आधी आबादी है
बिस्तर के भूगोल के बाहर भी दर्द का एक इतिहास मचलता है
वो देखो चुप्पी वाला सूरज धीरे धीरे ढलता है
वो दिन भी आ जायेगा जब रातो-दिन एक बराबर हों
जो अबतक राही बनीं रहीं, वो भी कभी तो रहबर हों
जो अक्सर उनके ही हिस्से में आयी
ये कैसी फूटी-फाटी किस्मत है
मर्द बड़ा है, छोटी औरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
चुप्पी से प्यार, बोल से नफरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
वो हयात मांग रही है और तुम हया थामते फिरते हो
बात असल ये है कि तुम उसकी आवाज़ से बेहद डरते हो
कभी सुरक्षा, कभी प्यार, कभी दुलार दिखाते हो
नाम बदल-बदल कर तुम कितनी शाजिश करते हो
जिसने तुमको जना है प्यारे
वो तुमको मना भी कर सकती है
जिन आँखों में प्यार है प्यारे
उनमे अंगार भी भर सकती है
लोक-लाज के इस अज़ाब आडम्बर को
उसमे उलटा-पुलटा करने की भी जुर्रत है
मर्द बड़ा है, छोटी औरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
चुप्पी से प्यार, बोल से नफरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
वो सर के पल्लू को अपने हांथो का परचम कर सकती है
वो अपनी आवाज़ को अपने दर्द का मरहम कर सकती है
तुम लाख करो उसको पीछे, वो खुद को तुम्हारे बरहम कर सकती है
ज़ख्म से झरते लहू को गंगा, आँख से गिरते अश्कों को ज़मज़म कर सकती है
पर उसने तुमको मोहलत दी है, कुछ टूटे न सबकुछ बच जाए
ख्वाबो और ख्यालों की दुनिया आँखों में रच जाए
ये जो प्यार से हो पाए तो बेहतर
वार्ना उसमे लड़ने और झगड़ने की भी हिम्मत है
मर्द बड़ा है, छोटी औरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
चुप्पी से प्यार, बोल से नफरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
हांथो की महेंदी, आँखों का अंगार बने, इससे पहले तुम जागो
चूड़ियां, कंगन, बिंदिया, नथिया, हथियार बने इससे पहले तुम जागो
जो हथेली हाँथ मिलाने को है खुली हुई, वो मुट्ठी बन जाए, इससे पहले तुम जागो
इस दुनिया में एक लड़ाई आज़ादी वाली ठन जाए इससे पहले तुम जागो
तुम जागो क्योंकि नींद से जागना ही सबसे बेहतर है
हम सभी बराबर है प्यारे, न कोई किसी से कमतर है
बेखबरी की नींद हम सो लिए बहुत
अब नींद से जागना ही सबसे बेहतर है
मर्द बड़ा है, छोटी औरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
चुप्पी से प्यार, बोल से नफरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
तुम्हारा- अनंत
चुप्पी से प्यार, बोल से नफरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
एक मुट्ठी है, गहरी भारी, जिसमे कैद आज़ादी है
एक ज़ंज़ीर है, जिसमे जकड़ी भारत की आधी आबादी है
बिस्तर के भूगोल के बाहर भी दर्द का एक इतिहास मचलता है
वो देखो चुप्पी वाला सूरज धीरे धीरे ढलता है
वो दिन भी आ जायेगा जब रातो-दिन एक बराबर हों
जो अबतक राही बनीं रहीं, वो भी कभी तो रहबर हों
जो अक्सर उनके ही हिस्से में आयी
ये कैसी फूटी-फाटी किस्मत है
मर्द बड़ा है, छोटी औरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
चुप्पी से प्यार, बोल से नफरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
वो हयात मांग रही है और तुम हया थामते फिरते हो
बात असल ये है कि तुम उसकी आवाज़ से बेहद डरते हो
कभी सुरक्षा, कभी प्यार, कभी दुलार दिखाते हो
नाम बदल-बदल कर तुम कितनी शाजिश करते हो
जिसने तुमको जना है प्यारे
वो तुमको मना भी कर सकती है
जिन आँखों में प्यार है प्यारे
उनमे अंगार भी भर सकती है
लोक-लाज के इस अज़ाब आडम्बर को
उसमे उलटा-पुलटा करने की भी जुर्रत है
मर्द बड़ा है, छोटी औरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
चुप्पी से प्यार, बोल से नफरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
वो सर के पल्लू को अपने हांथो का परचम कर सकती है
वो अपनी आवाज़ को अपने दर्द का मरहम कर सकती है
तुम लाख करो उसको पीछे, वो खुद को तुम्हारे बरहम कर सकती है
ज़ख्म से झरते लहू को गंगा, आँख से गिरते अश्कों को ज़मज़म कर सकती है
पर उसने तुमको मोहलत दी है, कुछ टूटे न सबकुछ बच जाए
ख्वाबो और ख्यालों की दुनिया आँखों में रच जाए
ये जो प्यार से हो पाए तो बेहतर
वार्ना उसमे लड़ने और झगड़ने की भी हिम्मत है
मर्द बड़ा है, छोटी औरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
चुप्पी से प्यार, बोल से नफरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
हांथो की महेंदी, आँखों का अंगार बने, इससे पहले तुम जागो
चूड़ियां, कंगन, बिंदिया, नथिया, हथियार बने इससे पहले तुम जागो
जो हथेली हाँथ मिलाने को है खुली हुई, वो मुट्ठी बन जाए, इससे पहले तुम जागो
इस दुनिया में एक लड़ाई आज़ादी वाली ठन जाए इससे पहले तुम जागो
तुम जागो क्योंकि नींद से जागना ही सबसे बेहतर है
हम सभी बराबर है प्यारे, न कोई किसी से कमतर है
बेखबरी की नींद हम सो लिए बहुत
अब नींद से जागना ही सबसे बेहतर है
मर्द बड़ा है, छोटी औरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
चुप्पी से प्यार, बोल से नफरत, ये कैसी फितरत है, कैसी फितरत है
तुम्हारा- अनंत
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