कहूँ कैसे की क्या ग़म है ,
क्यूँ आँखें ये मेरी नम है ,
दरो -दिवार भीगीं है ,
खून से लथ-पथ आँगन है ,
सिसक कर रो रहा है जो,
कि व्याकुल हो रहा है जो ,
शहीदों का पियारा वो,
भारत माँ का दामन है ,
मराठी नाम कर कोई मेरी हिंदी डरता है ,
देशद्रोही हो कर देशभक्त कहलाता है ,
कर के गुमराह जनता को लड़ता है -भिड़ता है ,
जला कर बस्तियां देखों रोयियाँ पकता है ,
न जमजमा,न तरन्नुम ,न कोई गीत गुंजन है ,
फिरकापरस्त कड़ी पाशों के खिलाफ ये ''अनंत ''का गर्जन है ,
शहीदों का पियारा ये भारत माँ का दामन है ,
किले पर चढ़ कर हर वर्ष कोई कुछ बोल जाता है ,
मेरी गरीबी भाषण में कैसे तोल जाता है ,
छिन गयीं रोटियाँ मेरी कि अब फांके पर जीता हूँ ,
कम्बखत है वो कैसा जो हिंद को बढ़ता बताता है,
जिधर मैं देखता हूँ बस मुझे अवसाद दीखता है,
अलगाववाद , क्षेत्रवाद ,आतंकवाद , दीखता है ,
सरकारें हो गयीं दरिंदा भूंख का सामान अब हम हैं ,
शहीदों का पियारा ये भारत माँ का दामन है ,
यूं ही खोते रहोगे तुम गर यूं ही सोते रहोगे तुम ,
अपनी ही रहा पर कब तक कांटे बोते रहोगे तुम ,
उठो आब क्रांति कि कोई नई ज्वाला जला दो तुम ,
शहीद तुममे जिन्दा हैं उन्हें ये बात दो तुम ,
बनो अब बोस बाबु सा कि संसद को हिला दो तुम ,
भगत ,आज़ाद , बिस्मिल ,की याद तजा करा दो तुम ,
परायों का नहीं प्यारे ये हमारा ही चमन है ,
शहीदों का पियारा ये भारत माता का दमकान है ,
तुम्हारा- -अनंत
1 टिप्पणी:
anurag,i love this comment upon the atrocities by the so called indian state .it is an inspiring and heart touching poem.I has invited my friends to read this.
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